औरउ एक गुपुत मत सबहि कहऊँकर जोरि ।
संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि ।। ७-४५
श्रीरघुनाथजी समस्त नगरवासियों को संबोधन करते हुए कहते है कि – एक गुप्त मत है, मैं उसे सबसे हाथ जोड़कर कहता हूँ कि शंकरजी के भजन बिना मनुष्य मेरी भक्ति नहीं पाता ।
गोस्वामीजी बालकाण्ड के मंगलाचरण में भी श्रीगणेशजी और श्रीसरस्वतीजी की वंदना के बाद तुरंत श्रद्धा स्वरुपा श्रीपार्वतीजी ओर विश्वास स्वरुप श्रीशंकरजी की वन्दना करते है । कहने का तात्पर्य यह है कि श्रद्धा ही पार्वतीजी है और विश्वास ही शंकरजी है । और बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना भगवान श्री रामजी पिघलते नहीं । मानसजी के अनुसार विश्रामरुपी श्रीरामजन्द्रजी को पाना है तो विश्वासरुपी शिवजी की आराधना अनिवार्य है ।
मानस सत्संग द्वारा आयोजित शिव-आराधना में शिवजी के कई स्तोत्र (यथा – शिवमहिम्नः, शिवमानसपूजा, श्रीरुद्राष्टकम्, लिंगाष्टकम्, बिल्वाष्टकम्, शिवताण्डवस्तोत्रम्, श्री शिवपंचाक्षरस्तोत्रम्, वेदसारशिवस्तव:, नटराज स्तुति) संगीतमय शैली में कलाकारों के साथ गाये जाते है । साथ ही साथ हर एक स्तोत्र की महिमा, शिवभजन एवं श्रीशंकरजी की महिमा कथनभी मति अनुसार होता है । समयावधि – २:३० से ३:०० घंटे तक ।