“अखंड रामायण”

रघुबंसभूषनचरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं ।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम रामधाम सिधावहीं ।।

       जो मनुष्य श्रीरघुवंशभूषणजी का यह चरित कहते है, सुनते है या गाते है, वे कलिमल और मन के मल को धोकर बिना परिश्रम ही रामधाम को सीधे जाते है ।

श्री रामचन्द्रजी रघुकुलभूषण है । इस छन्द में ‘जे नर’ कहकर जनाया कि कोई भी हो, किसी वर्ण या आश्रम का हो, अथवा चतुर्वणों से बाहर का हो, किसी भी जाति-पाँति का हो, सबको रामचरित के कहने, सुनने और गाने का अधिकार है । श्रीरामचरित्र के  कहने-सुनने आदि से कलिमल (अर्थात् कालकृत दोष) और मनोमल (अर्थात् अन्तःकरण के दोष) दोनो नष्ट हो जाते है एवं रामधाम की प्राप्ति होती है ।

हम सभी जानते है पूरे भारतवर्षमें जगह-जगह पर श्रीरामचरितमानस का अखंड पाठ होता है । मानसप्रेमी भक्तों एकत्रित होकर श्रद्धा-भावसे मानसजी का अखंड पाठ करते  है  तो वातावरण पवित्र हो जाता है । मानस सत्संग को भी  अखंड रामचरितमानस पाठ करने का अवसर बार-बार प्राप्त हुआ है । आये हुए सभी साधको को पाठ करने हेतु श्रीरामचरितमानसजी ग्रन्थ दिये जाते है । कोई भी साधक इस पाठ में जुड सकता है । कोई भी साधक अपनी अपनी समय अनुकुलता से आकर जुड सकते है।  मानस सत्संग के द्वारा १२ (बारह) गायको, एवं ८ (आठ) वादको के साथ संगीतमय शैली में गाया जाता है । तीन गायक - दो वादक (एक टीम-वृंद) एसी कुल चार टीम (वृंद) अखंड रामायण के स्थल पर उपस्थित रहती है ।
षोड्शोपचार पूजन (विप्रवर द्वारा)
श्रीहनुमानजी का आह्वान (आरंभ)
श्रीगणेशवंदना
श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन (स्तुति)

मूलपाठः
बालकाण्ड अयोध्याकाण्ड
अरण्यकाण्ड
किष्किन्धाकाण्ड
सुन्दरकाण्ड
लंकाकाण्ड
उत्तरकाण्ड
श्रीहनुमानचालीसा
दशांश होम (काकभुशुण्डि-रामायण) पूर्णाहुति
श्रीरामायणजी की आरती
श्रीहनुमानजी की आरती
कथा विसर्जन

समयावधिः २४.०० से २६.००घंटे