“राम कथा”

मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ।

गोस्वामीजी कहते है की श्री रघुनाथजीकी कथा मंगल करनेवाली ओर कलियुग के पापों को हरनेवाली है । संत तुलसीदासजी रचित श्रीरामचरितमानसजी के आधार पर नौ दिवसीय रामकथा यथामति गाने का नम्र प्रयास है । नौ दिवसीय रामकथा का गान एवं श्रवण करने का विधान हमे पुराणों से प्राप्त होता है ।

“नवाह्ना खलु श्रोतव्यं रामायणकथामृतम् ।”

भगवत् कृपा एवं प्रेरणा से रामकथा में शिवचरित्र, रामजन्म महोत्सव, केवट प्रसंग, राम-भरतमिलाप प्रसंग, शबरी प्रसंग, श्रीरामजी-हनुमानजी मिलन प्रसंग, अंगद-रावण संवाद, काकभुशुण्डिजी-गरुडजी संवाद, इत्यादि प्रसंगो को विशेष रुप से यथा समय, यथा समज गाया जाता है ।

       संसार में भगवान रामजी की कथा परम दुर्लभ है । जन्म-जन्मान्तर के पुण्य का उदय जब होता है तब रघुनाथजी की दिव्य कथासुनने का अवसर मिलता है । कथा श्रवण के बिना हमारा मोह दूर नहीं होता ओर मोह के गये बिना भगवान के चरणों में अचल प्रेम नहीं होता ।

श्रीरामकथा के माध्यम से हम सभी के हृदयमें श्रीसीतारामचरणरति हो, ओर रामजी के दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास करें एसे शुभ संक्ल्प के साथ मानस सत्संग के द्वारा रामकथा का आयोजन होता है ।
संपूर्ण श्रीरामचरितमानस में “रामकथा” शब्द तेरह (१३) बार आया हैं । परंतु जिस चोपाई व दोहे मे रामकथा शब्द प्रयोग के साथ उसका माहात्मयभी वर्णित हैं एैसी सात (७) चोपाईयाँ ओर दो (२) दोहे यहाँ प्रस्तुत हैं ।

बुध बिश्राम सकल जन रंजनि ।
रामकथा कलि कलुष बिभंजनि ।।१-३१-५
अर्थात्, रामकथा पण्डितों को विश्राम देनेवाली, सब मनुष्यों को प्रसन्न करनेवाली और कलियुग के पापों का नाश करनेवाली हैं ।

रामकथा कलि पंनग भरनी ।
पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी ।।  १-३१-६
रामकथा कलियुगरूपी सांप (पन्नग) के लिये मोरनी (मयूरनी) के समान हैंऔर विवेकरुपी अग्निकें प्रकट करने के लिये अरणि अर्थात् मन्थन की जानेवाली लकड़ी हैं ।

रामकथा कलि कामद गाई ।
सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ।।१-३१-७
रामकथा कलियुगमें सब कामद अर्थात्अभीष्ट मनोरथों को पूर्ण करनेवाली कामधेनु गौ हैं और सज्जनों के लिये सुन्दर संजीवनी जडी़ हैं ।

रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु ।
तुलसी सुभग सनेहबन सिय रघुबीर बिहारु ।।१-३१
रामकथा मन्दाकिनी नदी हैं । सुन्दर निर्मल चित्त चित्रकूट हैं । तुलसीदासजी कहते है कि भक्तों का सुन्दर स्नेह ही वन हैं, जहाँ श्रीसीतारामचन्द्रजी विहार करते हैं ।

महामोहु महिषेसु बिसाला ।
रामकथा कालिका कराला ।।१-४७-६
महामोह रुपी बडे़ भारी महिषासुर के लिए श्रीरामकथा बडी़ भयंकर कालिकादेवी हैं ।

रामकथा ससि किरन समाना ।
संत चकोर करहिं जेहि पाना ।।१-४७-७
रामकथा चन्द्रकिरणों के समान हैं । जिसे संतरुपी चकोर सदा पान करते हैं ।

रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुखदानि ।
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ।।१-११३
श्रीरामजीकी कथा कामधेनु के समान हैं । सेवा करनेसे सब सुखोंको देनेवाली हैं, और सत्पुरुषों के समाज ही सब देवताओं के लोक हैं,
ऐसा जानकर इसे कौन न सुनेगा ? ।।

रामकथा सुंदर कर तारी ।
संसय बिहग उडा़वनिहारी ।।१-११४-१
रामकथा हाथकी सुन्दर ताली हैं, जो सन्देहरुपी पक्षियोंको उडा़ देती हैं ।

रामकथा कलि बिटप कुठारी ।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी ।।१-११४-२
श्रीरामचन्द्रजीकी कथा कलियुगरुपी वृक्षको काटने के लिये कुल्हाडी़ हैं । हे गिरिराजकुमारी ! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो ।