“भजन संध्या”

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना ।
सत हरि भजनु जगत सब सपना ।।

हे उमा ! मैं तुम्हे अपना अनुभव कहता हूँ – हरि का भजन ही सत्य है, यह सारा जगत तो स्वप्न है ।
भगवद् भक्त के हृदय से नीकली हुई प्रेमयुक्त पुकार ही भजन है । भजन में भाव प्राधान्य होता है ।
जगद्गुरु श्रीशंकराचार्यजीभी कहते है कि-
भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते ।
सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे,
न हि न हि रक्षति डुकृञ करणे ।।

अर्थात, हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले, गोविन्द को भजो, गोविन्द से प्रेम करो, क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती ।
बिना हरिभजन के संसाररुपी समुद्र सें नहीं तरा जा सकता, यह सिद्धान्त अटल है ।
मानस सत्संग के द्वारा भावमयी शैली में कलाकार वृंद के साथ भजन गाये जाते है । भगवद्प्रेम चर्चा एवं भगवान के अनेक भक्तों के पद गाने का नम्र प्रयास है ।
भगवत् कृपा से कई शहरो के टाउन होल में भजन-सत्संग करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है ।
समयावधिः २.३० से ३.००घंटे