“नवाह्न पारायण”

राम उपासक जे जग माही  ।
एही सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं ।।


अर्थात् जगत में जितने भी रामजी के उपासक है, उनको तो इस रामायण के समान कुछ भी प्रिय नहीं है ।
नवाह्न पारायण अर्थात् नौ दिन हररोज नवाह्न पारायण के विश्राम स्थान अनुसार (जो मानसजी में दर्शाया गया है) पाठ करना । नवाह्न पारायण के विश्राम स्थान इस प्रकार है ।

पहला विश्राम – बालकाण्ड मंगलाचरण से १२० (क) दोहे तक ।
दूसरा विश्राम – बालकाण्ड दोहा १२० (क) से २३९ दोहे तक ।
तीसरा विश्राम – बालकाण्ड दोहा २४० से बालकाण्ड पूर्णाहूति ।
चोथा विश्राम – अयोध्याकाण्ड मंगलाचरण से ११६ दोहे तक ।
पांचवा विश्राम – अयोध्याकाण्ड दोहा ११७ से २३६ दोहे तक ।
छठ्ठा विश्राम – अयोध्याकाण्ड दोहा २३७ से अरण्यकाण्ड दोहा २९(क) तक ।
सातवाँ विश्राम – अरण्यकाण्ड दोहा २९ (ख) से लंकाकाण्ड दोहा १२(क) तक ।
आठवाँ विश्राम – लंकाकाण्ड दोहा १२ (ख) से उत्तरकाण्ड दोहा १०(ख) तक ।
नवाँ विश्राम – उत्तराकाण्ड दोहा ११ से उत्तरकाण्ड पूर्णाहूति तक ।


मानस सत्संग द्वारा संगीतमय शैली में सह-गायक वृन्द एवं वाद्यवृंद के साथ नवाह्न पारायण किया जाता है । नवाह्न पारायण के पहले दिन आरंभ में विप्रवृन्द द्वारा भगवान का षोड्शोपचार पूजन करने के बाद पाठ की शुरुआत होती है । भावअनुसार अनेकविध रागो में मानसगान होता है । सभी पाठको को पाठ करने हेतु मानसजी ग्रन्थ भी दिये जाते है । चैत्र और आश्विन नौरात्र के दिनो में नवाह्न पारायण का विशेष रुप से आयोजन होता है । सभी मानसप्रेमी इस पारायण में भाव और प्यार से जुडते है ।

समयावधिः नौ दिन हररोज ३.३० से ४.०० घंटे तक ।